Saturday, March 28, 2015

सकाम साधना

अपने पहले लिखे गये पोस्ट्स में मैंने कई बार इस बात का जिक्र किया है कि इस जीवन में हम सभी कुछ प्रारब्ध के अनुसार पाते हैं। इसमें पुरुषार्थ का कोई रोल नहीं है। पुरुषार्थ केवल आत्म अन्वेषण के लिये कारगर होता है।

इसी बात को तुलसीदास जी ने आधी चोपाई में बहुत ही सुंदर रूप से कहा है। वे कहते हैं :

“काहु न कोउ सुख दुख कर दाता, निज कृत करम भोग सबु भ्राता।“

अर्थात इस जीवन में कोई भी किसी को सु:ख या दु:ख नहीं देता है। यहां सभी लोग अपने किये हुए कर्मों के फल भोग रहे हैं।

इस ब्लोग की एक अन्य पोस्ट जिसका शीर्षक था “How were we … Part – XIV”, में लिखा गया था कि यद्यपि सकाम साधना से प्राप्त फल क्षणिक होता है इसका एक दूसरे रूप में महत्वपूर्ण योगदान है। सकाम साधना से प्राप्त फल से साधक की गुरु और आध्यात्मिक खोज में आस्था हो जाती है। सकाम साधना की बस इतनी ही उपादेयता है। से कबुतर, ‘को समझने की दिशा में पहला कदम है। उसके बाद को उपयोग में लाने के लिये, ‘कबुतरको बीच में लाने से पढने में बडी समस्या हो जायेगी।

और एक सत्य यह भी है कि जीवन में प्रारब्धवश या सकाम साधना से जो फल प्राप्त होते हैं, वे शीघ्र ही काल के द्वारा नष्ट कर दिये जाते हैं और मनुष्य फिर से अभावग्रस्त या दु:खी हो जाता है।  इस बारे में श्रीमद्भागवत (4:22:36) में लिखा है :

“प्रक्रति में गुणक्षोभ होने के बाद जितने भी उत्तम और अधम भाव पदार्थ प्रकट हुए हैं, उनमें कुशल से रह सके ऐसा कोई भी नहीं है। कालभगवान उन सभी के कुशलों को कुचलते रहते हैं।”

जीवन के चार सत्यों को बताते हुए भगवान बुद्ध भी पहले सत्य के रूप में कहते हैं - जीवन दु:ख है। इस जीवन में सुखको प्राप्त करने के सभी प्रयासों के फलस्वरूप दु:ख ही प्राप्त होता है।  श्रीमद्भागवत (4:29:32 व 33) में कहा गया है कि यदि कभी दु:ख से छुटकारा होता हुआ मालूम भी पडता है तो वह केवल तात्कालिक (in that moment) छुटकारा ही है| वह ऐसा ही है जैसे कोई सिर पर भारी बोझा ढोकर ले जाने वाला पुरुष उसे कंधे पर रख ले। यदि किसी उपाय (यज्ञ, पूजा, तंत्र आदि) से मनुष्य किसी कामना की पूर्ति कर लेता है या एक प्रकार के दु:ख से छुट्टी पाता है, तो दूसरी कामना पैदा हो जाती है या दूसरा दु:ख आकर उसके सिर पर सवार हो जाता है। अत: ऐसे उपायों का या सकाम साधना का कोई आत्यांतिक मूल्य नहीं है।

जीवन में दु:खों का निवारण तो तब ही होता है जब व्यक्ति का प्रेम बाह्य वस्तुओं और व्यक्तियों से हटकर प्रभु में लग जाये। और ऐसा होने की पहली सर्त यह है कि व्यक्ति को  जो कुछ भी (प्रारब्ध के अनुसार) मिल जाये वह उसी में संतुष्ट रहे। वह उससे अन्यथा की इच्छा न करे।

इस बारे में एक राजा (प्राचीनबर्हि) जो घर, गृहस्ती को चलाने के लिये वेदों में बताये हुए कर्मकांडों में लगा हुआ था को समझाते हुए नारदजी (श्रीमद्भागवत 4:29:47, 48 और 50) कहते हैं ‌:

“बर्हिष्मन! तुम इन कर्मों में परमार्थ बुद्धि मत करो। ये सुनने में ही प्रिय जान पडते हैं, परमार्थ का तो स्पर्श भी नहीं करते। ये जो परमार्थवत दीख पडते हैं इसमें केवल अज्ञान ही कारण है। जो मलिनमति कर्मवादी लोग वेद को कर्म परक बताते हैं, वे वास्तव में उसका मर्म नहीं जानते। ... श्रीहरि सम्पूर्ण देहधारियों के आत्मा, नियामक और स्वतंत्र कारण हैं; अत: उनके चरणतल ही मनुष्यों के एक मात्र आश्रय हैं और उन्हींसे संसार में सबका कल्याण हो सकता है”

और अगर कोई श्रीहरि की भक्ति पूर्वक आराधना करता है तो फिर उसे कुछ और करने या कराने की कोई आवश्यक्ता नहीं है।  इस बारे में नारद जी कहते हैं (श्रीमद्भागवत 4:31:13 और 14) :

“वास्तव में समस्त कल्याणों की अवधी आत्मा ही है और आत्मज्ञान प्रदान करने वाले श्रीहरि ही सम्पूर्ण प्राणियों की प्रिय आत्मा हैं। जिस प्रकार वृक्ष की जड सींचने से उसके तने, शाखा, उपशाखा आदि सभी का पोषण हो जाता है और जैसे भोजन द्वारा प्राणों को तृप्त करने से सम्स्त इन्द्रियाँ पुष्ट होती हैं, उसी प्रकार श्रीभगवान की पूजा ही सबकी पूजा है।”

यज्ञ (वेदो में बताये हुए कर्म), पूजा, तंत्र आदि के द्वारा किसी इच्छा की पूर्ति या दु:ख के निवारण का एक negative consequence यह है कि इससे astrologers, पंडित, तांत्रिक आदि व्यक्ति के लालच और डर का पूरा फायदा उठाते हैं और बार बार के उपयोग से वह उनके चक्कर में फँस जाता है और अपना confidence खो बैठता है।

श्रीसीताराम बाबा तारक मंत्र हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे” के एक अग्रणीय प्रसारक हुए हैं। इस मंत्र की कारगरता को उन्होंने अपनी एक पुस्तक ‘Madman’s Jholli’ में अत्यंत सुंदर ढंग से बताया है।  अलग-अलग व्यक्ति जब उनसे अलग-अलग समस्याओं के समाधान के बारे में मार्गदर्शन चाहते हैं (कोई पेट दर्द के लिये, कोई बच्चे की नौकरी के लिये आदि) तो वे पहले उन्हें बहुत elaborate और complex उपाय बताते हैं और जब प्रश्नकर्ता उनसे सरल उपाय के बारे में अनुरोध करता है तो वे हर बार फिर तारक मंत्र को ही उन समस्याओं के निदान का माध्यम बताते हैं।

अत: अगर कोई व्यक्ति सद्गुरु के बताये तरीके से साधना कर रहा है तो उसको हर समस्या के लिये गुरु के अलावा कहीं और से अलग-अलग साधन खोजने की आवश्यक्ता नहीं है। बाकी सब प्रारब्ध के अनुसार ही होगा और जैसा ऊपर लिखा है अपनी सुख शांति के लिये हमें उसी में संतुष्ट रहना चाहिये।